स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) (बाहरी विंडो में खुलने वाली वेबसाइट) ग्रामीण गरीबों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए एक समन्वित कार्यक्रम के रूप में पहली अप्रैल, 1999 को शुरू की गई। योजना का उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे लोगों की मदद करके सामाजिक एकजुटता, प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और आमदनी देने वाली परिसंपत्तियों की व्यवस्था के जरिए उन्हें स्वयं-सहायता समूहों के रूप में संगठित करना है। यह कार्य बैंक ऋण और सरकारी सब्सिडी के जरिए किया जाता है। लोगों की अभिवृत्ति और कौशल, संसाधनों की उपलब्धता और बाजार की संभाव्यता के आधार पर चुने हुए मुख्य कार्यकलापों के द्वारा कार्यकलाप समूह की स्थापना पर यह योजना ध्यान देती है। इस योजना में प्रक्रियागत दृष्टिकोण और गरीब ग्रामीणों की क्षमता निर्माण पर बल दिया जाता है। इसलिए इसमें स्वयंसेवी सहायता समूहों के विकास और पोषण, जिसमें कौशल-विकास भी शामिल है, में गैर-सरकारी संगठनों/सीबीओज/व्यक्तियों/बैंकों को स्वयं सहायता संवर्द्धन संस्थान/सुविधा प्रदाता के रूप में शामिल किया जाता है। योजना के तहत स्थानीय जरूरतों के मुताबिक सामाजिक मध्यस्थता और कौशल विकास प्रशिक्षण पर आने वाली लागत उपलब्ध कराई जाती है। समूहों के विकास की अवस्था के आधार पर प्रशिक्षण, आवर्ती कोष से आवंटन और आर्थिक कार्य-कलाप हेतु निधि के उपयोग में डी.आर.डी.ए. और राज्यों को लचीलेपन की गुंजाइश दी गई है।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर आय सृजन के अवसर पैदा करने के लिए गरीब व्यक्तियों की क्षमता और हर क्षेत्र की भूमि-आधारित और अन्य संभावनाओं के आधार पर बड़ी संख्या में लघु उद्यमों की स्थापना पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इसलिए इसमें विभिन्न घटकों जैसे गरीब व्यक्तियों में क्षमता पैदा करना, कौशल विकास प्राशिक्षण, ऋण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, विपणन और ढांचागत सहायता पर विशेष बल दिया जाता है। योजना के अंतर्गत सब्सिडी कुल परियोजना लागत के 30 प्रतिशत की दर से दी जाती है लेकिन इसकी अधिकतम सीमा 7,500 रुपए (अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और विकलांगों के लिए यह सीमा 50 प्रतिशत रखी गई है जो अधिकतम 10,000 रुपए है) तय की गई है। स्वयं-सहायता समूहों को परियोजना लागत का 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है जिसकी अधिकतम सीमा 1.25 लाख या प्रति व्यक्ति 10,000 रुपए, इनमें जो भी कम हो, तय की गई है। लघु सिंचाई परियोजनाओं, स्वयं सहायता समूहों और स्वरोजगारियों के लिए सब्सिडी की कोई अधिकतम सीमा तय नहीं की गई है।
एसजीएसवाई में ग्रामीण गरीबों में कमजोर वर्गों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। तदनुरूप स्वरोजगारियों में से कम से कम 50 प्रतिशत अनुसूचित जातियों/जनजातियों से, 40 प्रतिशत महिलाओं और 3 प्रतिशत विकलांगों को शामिल करना अनिवार्य बनाया गया है। योजना के तहत एक बार ऋण देने के बजाय बहु-ऋण सुविधा को तरजीह दी जाती है।
स्थानीय संसाधनों, लोगों की व्यावसायिक योग्यता और बाजार उपलब्धता के आधार पर प्रत्येक ब्लॉक में 10 मुख्य क्रियाकलापों तक का चयन किया जा सकता है ताकि स्वरोजगारी अपने पूंजी निवेश से समुचित आय प्राप्त कर सकें। योजना में सामूहिक प्रस्तावों पर जोर दिया गया है अर्थात् ब्लॉक स्तर पर चार-पांच चुनी हुई गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए और उन गतिविधियों के सभी पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इस योजना में चुनी हुई गतिविधियों पर आधारित प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों और प्रत्येक स्वरोजगारी की आवश्यकताओं के अनुरूप उसके विकास पर जोर दिया जाता है। स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना पंचायती राज संस्थाओं, बैंकों और स्वयंसेवी संगठनों की सक्रिय भागीदारी के साथ जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों (बाहरी विंडो में खुलने वाली वेबसाइट) के जरिए क्रियान्वित की जा रही है। योजना पर खर्च की जाने वाली राशि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा 75:25 के अनुपात में वहन की जाती है।
इस कार्यक्रम के तहत शुरू से अब तक 22.52 लाख स्वयं-सहायता समूहों का गठन किया जा चुका है जिनमें 66.97 लाख स्वरोजगारी शामिल हैं। इन स्वरोजगारियों में 35.54 लाख स्वयं-सहायता समूह के सदस्य और 31.43 लाख व्यक्तिगत स्वरोजगार प्राप्त हैं। इन्हें कुल 14,403.73 करोड़ रुपए की निवेश सहायता दी गई है। सहायता प्राप्त कुल स्वरोजगा प्राप्त लागों में से 45.54 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबद्ध हैं और 47.85 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। 2006-07 के दौरान इस योजना के लिए 1200 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता का प्रावधान किया गया है।
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